श्री हित प्रेमानंद महाराज जी ने कहा है कि जो व्यक्ति
विषयी में ज्यादा रूचि रखता है। और उसके
मन में हमेशा विषयी भोगों का चिंतन चलता
रहता है। विषयी भोग का मतलब है कामसुख।
जो व्यक्ति हमेशा कामसुख की सोचता है।
वो व्यक्ति चाहे कितने भी तीर्थ स्नान कर लें।
लेकिन हमेशा वह व्यक्ति अपवित्र ही रहेगा।
इसलिए हमें कभी भी कामसुख की नहीं सोचना
चाहिए। हमें भगवान का नाम जप करना चाहिए।
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